Monday, November 17, 2008

फेफाना का साहित्य-महबूब ali

फेफाना का साहित्यराजनीति के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाला फेफाना साहित्य के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान रखता है। गांव ने समय-समय पर कई प्रसि( साहित्यकार क्षेत्र को दिए, जो अपनी साहित्यिक साधना में लीन रहंे तथा नई उफचाईयों को उन्होने छुआ। इन्हीं साहित्यिकारों में स्व.भूरसिंह राठौड़,डॉ.करणीदान बारहठ,मोहन योगी थे,रामजस आर्य'भजनोपदेशक`,जसवंत स्वामी'फेफाणा`,ललीत गोयल,भीमसैन इंदौरिया,शंकरलाल पूनियां,वेदप्रकाश छिम्पा,महबूब अली,रमेश धामू,गोपीदान चारण,विश्वनाथ स्वामी,अजय पूनियां,हिरालाल सिहाग,इन्द्राज ढ़ाका,मनोज चारण,सरिता बारहठ आदि उल्लेखनिय है। स्व. भूरसिंह राठौड़ :- सन् १९४२ में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारत छोड़ो अन्दोलन शुरू हुआ,उस समय स्व.भूरसिंह राठौड़'राजस्थान क्षत्रिय महासभा के सहायक मन्त्री के पद पर रहे व अजमेर से 'क्षात्र धर्म` नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया। फिर अपनी लेखनी की गति को तेज करते हुए 'क्षत्रिय गौरव` का प्रकाशन किया । सन् १९५० में ठाकुर साहब ने पंचायत कानून का राजस्थानी भाषा में अनुवाद कर पुस्तक का नाम'अपणो राजस्थान` रखा। सन् १९६९ में साप्ताहिक पत्र'सत्य विचार`का सम्पादन कार्य किया। सन् १९६५ में 'मरू जांगल शोध संस्थान फेफाना` की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य प्रदेश की प्राचीन साहित्यिक व सांस्कृतिक सामग्री का संकलन व शोध करना था। सन् १९७३ से १९७५ के मध्य संस्था द्वारा कवि बहादर और उसकी रचना;प्राचीन कविद्ध पुस्तक प्रकाशित हुई तथा दो ग्रन्थ'अन्तराम सांखला`,व 'केवाढ़ सखाहिया री बात` का संपादन भी भूरसिंह राठौड़ ने ही किया। सन् १९७९ में 'मरु-जांगल`नाम की पत्रिका संस्थान द्वारा प्रकाशित हुई। संस्थान के निम्न ग्रन्थ प्रकाशनाधिन थे: राजस्थान में राठौड़ सामा्रज्य की स्थापना और विस्तार,सरस्वती घाटी के ग्रामों मे ग्राम साहित्य। डॉ.करणीदान बारहठ:- मरूधरा साहित्यिक संस्था के संस्थापक रहे एवं बारहठ की लेखनी काफी समय तक रही। इनकी प्रमुख रचनाएं जो पुस्तकों के माध्यम से प्रकाशित हुई उनमें झिंडियों;बाल काव्यद्ध,झर-झर कथा;कविता संग्रहद्ध,शकुतला;महाकाव्यद्ध,आदमी रो सींग;कहानी संग्रहद्ध,च्यानणो;एंकाकी संग्रहद्ध,राणी सती,;खण्ड काव्यद्ध,दाइजो;एंकाकी संग्रहद्ध,थे बारै जाओ,मन्त्री री बेटी;उपन्यासद्ध,बड़ी बहिन जी;उपन्यासद्ध,छोटा नाटक टाबर रा;एंकाकी संग्रहद्ध,लिछमी;एंकाकी संग्रहद्ध,माटी री महक;कहानी संग्रहद्ध,अठै महारलो गांव;दोहा सतसईद्ध,मटमैली माटी;उपन्यासद्ध। उनकी हिन्दी की पुस्तको में बड़वानल ;कविता संग्रहद्ध,कलाई का धागा,प्रेमलता,चाय के धब्बे,कुहरा और किरणें,खुरदरा आदमी ;उपन्यासद्ध,औरत और जहर;कहानी संग्रहद्ध गांव की कहानिया-२ इत्यादि प्रमुख है। इनकी रचना बूढ़ळी तथा शकुंतला नामक महाकाव्य १९७४ से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में रहा। माटी री महक जोध्पुर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है। रामजस आर्य:- सवेदनशील दृढ़ व्यक्तित्व के धनी रामजस आर्य ने अपने भजनों की पुस्तकों द्वारा समाज में घूम-घूम कर प्रचार किया,इनकी प्रकाशित पुस्तकों मे 'रामजस भजनावली,नई दुनियां,गजब की मार,भजन नये जमाने के` आदि प्रमुख है। अपंग होने के बावजूद आज भी वे युवाओं को साहित्य के लिए प्रेरित करने में लगे हुए है। मोहन योगी:- सन् १९८० में युवा रचनाकर समिति फेफाना का गठन हुआ जिसके मोहन योगी अध्यक्ष बने। सन् १९८१ मंे सम्मान पत्र प्रदान किया गया। अखिल भारतीय प्रतियोगिता में पुरस्कृत इकत्तीस रचनाकारों के साथ अन्य श्रेष्ठ लघुकथाओं का समावेश कर संकलन 'सबूत दर सबूत`दिनमान प्रकाशन ;नई दिल्लीद्ध द्वारा प्रकाशित किया गया। जिसका संकलन व संपादन मोहन योगी ने ही किया। रामजस आर्य की जीवन की झांकी ;जीवनीद्ध का संपादन व भजनों की पुस्तक का प्रकाशन भी मोहन योगी ने ही किया। असहाय मानव कल्याण समिति;रजि.द्ध फेफाना की नियमावली को इन्होंने ही तैयार किया था। उनकी सभी पुस्तकें अप्रकाशित रहीं।जसवंत स्वामी'फेफाणा`:-राजस्थानी तथा हिन्दी में समान रुप से लिखने वाले जसवंत स्वामी ने साहित्य को अलग पहचान दी है। इनकी पुस्तकों मंे 'दियो ओळमो बिनणी`;दोहा सतसईद्ध प्रमुख है। इसके अलावा 'बूढ़ळी रो खजानो`;बाल कथा संग्रहद्ध तथा चौखा लागै गांव ;ग्राम सतसईद्ध अप्रकाशित पुस्तके है। इनकी रचनाए आकाशवाणी पर प्रसारित होती रहती है।

No comments: