Sunday, October 5, 2008

एक फूल क्या मुरझाया कि चमन ही उजड़ गया!

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मोहन योगी का जन्म १० अगस्त १९५४ को गरीब परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्होंने साहित्य व पत्रकारिता का शौक पाला था। गरीबी में जन्में और अन्तिम समय तक गरीबी से संघर्ष करते हुए इस दुनियंा-ए-फानी से कूच कर गए। ज्ञान के हर क्षेत्र में समान रुप से रुचि रखने वाले मोहन योगी ने अपनी रचनाओं की शुरुआत तब से श्रेष्ठ समाचार पत्रों दिनमान, हिन्दुस्तान से की। राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनेक रचनाएं छपी। अस्सी के दशक में ही साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र मंंे अपनी जगह बनाई। पत्रकारिता के दायित्वपूर्ण क्षेत्र में इनके द्वारा कि गई रिर्पोटिंग ने एक मुकाम हासिल किया था। हिन्दी व राजस्थानी मंेे समान रुप से लिखा। सन् १९७६ से हिन्दी व १९८१ से राजस्थानी में लेखन प्रारम्भ किया। उनकी राजस्थानी रचनाएं माणक में छपती थी। जिनमंे उनकी बाल कहानियां एवं समाज की विसंगतियांे पर चोट करती हास्य की रचनाएं थी। सन् १९८० में उन्हांेने युवा रचनाकार समिति का गठन किया। उनके प्रयासों से ही तीन बार अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें चुनी गई रचनाओं से ही 'सबूत दर सबूत` का संपादन मोहन योगी व महेन्द्र महलान;तिंजाराद्ध ने किया था। १९७९ में श्रीगंगानगर जिले की एकमात्र साहित्यिक पत्रिका 'राजस्थान सवित्री` का प्रकाशन किया । मासिक बाल पत्रिका ज्ञानजीत में भी वे नियमित रुप से लेखन करते रहे तथा पत्रिका के सलाहकार मण्डल के संरक्षक सदस्य थे। सन् १९७८ में डाक विभाग मंे डाक वितरण का कार्य करना शुरु किया जो अन्तिम दिनों तक जारी रहा। कई प्रतियोगिताओं में सम्मानित भी हुए। आर्य समाज की विद्या वाचस्पति,सत्यार्थ भास्कर,आर्य विशारद,सत्यार्थ शास्त्री उपाध्यिां परीक्षा उतीर्ण की। नाथ समाज द्वारा भी उन्हें दो बार सम्मानित किया गया था। प्राकृतिक एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा के अच्छे जानकार थे तथा नि:शुल्क ईलाज करते थे। मरुधरा साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष रहे। सरस्वती विद्यालय की स्थापना से ही जुड़े रहे तथा समय-समय पर अपनी सेवाएं दी। उनकी सभी पुस्तकें अप्रकाशित रही जिनमें ''फेफाना इतिहास`` भी उन्हांेने कई टूकड़ों में लिखा जिसे मरुधरा स्मारिका-२००३ में उनके जीवन काल में छपा। मिलनसार प्रवृति एवं हर काम में अच्छी सलाह देने वाले डा.मोहन योगी का लम्बी बीमारी के बाद टीबी से ७ नवम्बर २००४ को निधन हो गया। उनके जाने से यहां साहित्य क्षेत्र में एक ठहराव सा आ गया। एक फूल क्या मुरझाया कि चमन ही उजड़ गया! -महबूब अली

5 comments:

Sunil Deepak said...

महबूब जी, डा. मोहन योगी के बारे में यह जानकारी देने के लिए धन्यवाद. कुछ उनका लिखा हुआ भी पढ़ाईये अपने चिट्ठे के माध्यम से.

हिन्दीवाणी said...

स्वागत है। निरंतरता बनाए रखें।

बवाल said...

रोचक लेख है अली साहेब. लिखते रहिये.

प्रदीप मानोरिया said...

सार्थकआलेख हिन्दी चिठ्ठा जगत में आपका बहुत स्वागत है निरंतरता की चाहत है
मेरा आमंत्रण स्वीकारें समय निकाल कर मेरे चिट्ठे पर भी पधारें

Unknown said...

bahut achcha